अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का आर्टेमिस-1 मून मिशन होल्ड हो गया है। रॉकेट के चार में से एक इंजन में आई खराबी के कारण इसकी लॉन्चिंग के लिए चल रहे काउंट डाउन को रोक दिया गया है। रॉकेट की लॉन्चिंग भारतीय समय अनुसार सोमवार शाम 6.03 पर होनी थी। लेकिन, अब यह लेट हो सकता है। नासा ने अभी लॉन्चिंग को लेकर नया अपडेट नहीं दिया है।
दशकों से हो रही नासा के ह्यूमन मून मिशन में देरी
- SLS रॉकेट 2010 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में बना था। इस वक्त ‘कॉन्स्टलेशन प्रोग्राम’ के जरिए वे अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजना चाहते थे, लेकिन मिशन में कई बार देरी के बाद सरकार ने इसे बंद करने का फैसला किया था।
- नासा की नई प्लानिंग के तहत SLS रॉकेट की लॉन्चिंग 2016 में होनी थी। इसमें देरी होने के बाद 2019 में उस वक्त के नासा एडमिनिस्ट्रेटर जिम ब्राइडनस्टीन को पता चला कि रॉकेट को तैयार करने में अभी एक साल का समय और लगेगा।
- इसी साल एक सरकारी रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि नासा के मिशन में हो रही देरी से सरकार को करोड़ों डॉलर्स का नुकसान हो रहा है। हालांकि, डोनाल्ड ट्रम्प से लेकर जो बाइडेन तक, देश के सभी राष्ट्रपतियों ने आर्टेमिस मिशन को सफल बनाने के प्रयास जारी रखे।
आर्टेमिस-1 मिशन का लक्ष्य क्या है?
आर्टेमिस-1 एक मानवरहित मिशन है। पहली फ्लाइट के साथ वैज्ञानिकों का लक्ष्य यह जानना है कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चांद पर सही हालात हैं या नहीं। साथ ही
नासा के मुताबिक, नया स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) मेगारॉकेट और ओरियन क्रू कैप्सूल चंद्रमा पर पहुंचेंगे। आमतौर पर क्रू कैप्सूल में एस्ट्रोनॉट्स रहते हैं, लेकिन इस बार यह खाली रहेगा। ये मिशन 42 दिन 3 घंटे और 20 मिनट का है, जिसके बाद 10 अक्टूबर को कैप्सूल धरती पर वापस आ जाएगा। स्पेसक्राफ्ट कुल 20 लाख 92 हजार 147 किलोमीटर का सफर तय करेगा।
तीन पॉइंट्स में समझिए पूरा आर्टेमिस मिशन…
1. यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के प्रोफेसर और वैज्ञानिक जैक बर्न्स का कहना है कि आर्टेमिस-1 का रॉकेट ‘हेवी लिफ्ट’ है और इसमें अब तक के रॉकेट्स के मुकाबले सबसे शक्तिशाली इंजन लगे हैं। यह चंद्रमा तक जाएगा, कुछ छोटे सैटेलाइट्स को उसके ऑर्बिट (कक्षा) में छोड़ेगा और फिर खुद ऑर्बिट में ही स्थापित हो जाएगा।
2. 2024 के आसपास आर्टेमिस-2 को लॉन्च करने की प्लानिंग है। इसमें कुछ एस्ट्रोनॉट्स भी जाएंगे, लेकिन वे चांद पर कदम नहीं रखेंगे। वे सिर्फ चांद के ऑर्बिट में घूमकर वापस आ जाएंगे। हालांकि इसका टाइम पीरियड ज्यादा होगा।
3. इसके बाद फाइनल मिशन आर्टेमिस-3 को रवाना किया जाएगा। इसमें जाने वाले अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरेंगे। यह मिशन 2030 के आसपास लॉन्च किया जा सकता है। पहली बार महिलाएं भी ह्यूमन मून मिशन का हिस्सा बनेंगी। बर्न्स के मुताबिक, पर्सन ऑफ कलर (श्वेत से अलग नस्ल का व्यक्ति) भी क्रू मेम्बर होगा। सभी लोग चंद्रमा के साउथ पोल में जाकर पानी और बर्फ की खोज करेंगे।
अपोलो मिशन से कैसे अलग है आर्टेमिस?
अपोलो मिशन की परिकल्पना अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जे एफ केनेडी ने सोवियत संघ को मात देने के लिए की थी। उनका लक्ष्य सिर्फ अंतरिक्ष यात्रा नहीं था, बल्कि साइंस एंड टेक्नोलॉजी की फील्ड में अमेरिका को दुनिया में पहले स्थान पर स्थापित करना था। हालांकि, अब करीब 50 साल बाद माहौल अलग है।
अब अमेरिका आर्टेमिस मिशन के जरिए रूस या चीन को मात नहीं देना चाहता। नासा का उद्देश्य पृथ्वी के बाहर स्थित चीजों को अच्छी तरह एक्सप्लोर करना है। चांद पर जाकर वैज्ञानिक वहां की बर्फ और मिट्टी से ईंधन, खाना और इमारतें बनाने की कोशिश करना चाहते हैं।
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