बाड़मेर की रुमा देवी का जीवन परिचय – Ruma Devi Age, Husband, Household, Schooling, Biography

आज के इस पोस्ट मे हम आपको राजस्थान की लक्ष्मी रुमा देवी के जीवन के बारे मे बताएगे जिसमे आपको

Ruma devi Age, Husband, Household, Schooling, Profession के बारे मे बताएगे।

Identify Ruma Devi

Date of Start 1988

Start Place Ravatser, Barmer

Schooling eighth Move

Career Trend Designer

Sasural Magare ki Beri

Nari Shakti Award 2019

Faith Hindu

Nationality Indian

रुमा देवी ने बाड़मेर से सटे जैसलमेर और बीकानेर के 75 गांवों की 22,000 महिलाओं को रोजगार प्रदान कर आत्मनिर्भर बनाया। 2018 में नारी शक्ति अवार्ड से सम्मानित रूमा देवी अपने फैशन डिजाइनर के तौर पर पूरे विश्व में प्रसिद्ध हासिल कर चुकी हैं आठवीं तक पढ़ाई करने वाली रूमा देवी ने अपनी पहचान गांव या प्रदेश तक ही नहीं बनाई बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इनकी प्रसिद्धि हासिल है

रुमा देवी ने अपने पैशन को फॉलो करते हुए कशीदाकारी में अपना नाम कमाया। रुमा देवी ने अपने जीवन में कई संघर्ष किए, इन्हीं संघर्षों की बदौलत आज इतने बड़े मुकाम पर पहुंच पाई हैं मात्र 17 साल की उम्र में शादी हो जाना और अपनी पहली संतान को इलाज न होने की वजह से खो देने जैसे संघर्षों ने इनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इन्होंने अपने आसपास गांवों में रहने वाली हजारों महिलाओं के समूह के साथ काम किया और अपने कशीदाकारी के काम को आगे बढ़ाते हुए पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाई। 2018 में रमा देवी को भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति अवार्ड से सम्मानित भी किया गया, यह इनके लिए एक गर्व की बात थी।

रुमा देवी बाड़मेर जन्म, माता-पिता, गाव, शिक्षा, परिवार, घर

रुमा देवी का जन्म 1988 मे बाड़मेर जिले के रावतसर गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था जब रूमा देवी मात्र 4 वर्ष की थी, तब इनकी माता जी का देहांत हो गया, इन की सात बहने थी तथा इनके पिताजी ने माता जी का देहांत हुआ तो दूसरी शादी कर ली, तब रूमा देवी को अपने चाचा के यहां भेज दिया। रुमा देवी ने आठवीं क्लास तक अपनी पढ़ाई पूरी की और उसके बाद इनकी पढ़ाई को बंद करवा दिया गया, क्योंकि स्कूल काफी दूर हुआ करता था पहनने के लिए चप्पल तक ना होने के कारण, यह आगे नहीं पढ़ पाए।

रुमा देवी की दादी मां कशीदाकारी का काम किया करते थे इसी वजह से रूमा देवी भी इनके पास कशीदाकारी के काम को अच्छी तरीके से सीख गई थी कशीदाकारी का काम करने के साथ-साथ रूमा देवी अपने घर के कामों में भी हाथ बढ़ा दिया करती थी बाड़मेर में पानी की काफी ज्यादा दिक्कत होने के कारण इन्हें 10 किलोमीटर दूर तक जाकर बैलगाड़ी से पानी लाना पड़ता था।

 

रुमा देवी की शादी 17 वर्ष की उम्र में कर दी गई और उसके ठीक 2 साल बाद में उनकी एक संतान हुई, उस संतान ने 48 घंटे के भीतर ही दम तोड़ दिया, क्योंकि इलाज करवाने के लिए इनके पास पैसे नहीं थे जिस कारण वे अपने उस कमजोर बच्चे का इलाज नहीं करवा पाए, यही से रूमा देवी की जीवन में एक नया मोड़ आता है क्योंकि जब उनके बच्चे की मृत्यु हो जाती है तो वह अंदर तक झकझोर जाती है इस वजह से उसने सोच लिया कि अब वह चूल्हे छोके तक ही अपनी जिंदगी को सीमित नहीं रखेगी बल्कि दो पैसे कमाने के लिए और भी काम करेगी। रुमा देवी के एक बेटा है जिसका नाम लक्षत है जो पांचवी क्लास में पढ़ता है।

रुमा देवी के केरियर की शुरुआत

रुमा देवी के बच्चे की जब मृत्यु हुई तब उन्होंने कुछ करने की ठान ली थी, लेकिन उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करें। तब उनको याद आया कि उन्होंने बचपन अपनी दादी मां की साथ कशीदाकारी का काम सीखा था तब रूमा देवी ने अपने इसी काम को आगे बढ़ाने का सोच लिया और मार्केट से कुछ मटेरियल खरीद लिया और उनकी बैग बनाकर आसपास की दुकानों पर सप्लाई करने लगी। इन्होंने एक पुरानी सिलाई मशीन भी खरीद ली थी इसकी मदद से बैग बनती और मार्केट में सफ्लाई कर दिया करती थी धीरे-धीरे उनकी डिमांड मार्केट में काफी ज्यादा बढ़ने लगी इस कारण इन्होंने अपने आसपास की महिलाओं एक समूह बनाया और अपने काम को आगे बढ़ाया।

जैसे-जैसे Ruma Devi का काम बढ़ाने लगा तो इन्होंने 10 महिलाओं के समूह को 2008 में बनाया जिसका नाम रखा“ दीप देवल महिला स्वयं सहायता समूह” और बड़ी मेहनत लगन से काम शुरू किया। शुरुआत में रुमा देवी के पास पैसे की कमी थी तब उन्होने किसी से पैसा उधार लेकर काम चलते थे इनका काम धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उनके काम काफी ज्यादा बढ़ने लगा, तब उन के गाव में “ग्रामीण विकास चेतना संस्थान” था Ruma Devi संस्थान में गई और उन्होंने हस्तशिल्प के लिए सहयोग मांगा।

अध्यक्ष ने इनसे चंपल मांगे, और 2 दिन का समय दिया परंतु एक ही दिन में सैंपल तैयार करके रुमा देवी ने दिखाएं। इनके काम को काफी ज्यादा पसंद किया गया और उन्हें यहां से पहले आर्डर मिला है

इसी तरीके से रूमा देवी का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। 2008 में उन्होंने सिर्फ 10 महिलाओं के साथ काम शुरू किया था जबकि 2010 के अंत में इन्होंने 5000 महिलाओं को अपने काम के साथ जोड़ दिया तथा उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया। रुमा देवी ने अपनी संस्था की मदद से महिलाओं को हस्तशिल्प में प्रशिक्षित किया और उन्हें काम करने का हुनर सिखा दिया ।

एक बार रुमा देवी को एक फैशन शो देखने दिल्ली में जाने का मोका मिल गया, तब उन्हे लगा की हम इस कला में काफी पीछे हैं उस समय में भारत देश में हस्तकला क्षेत्र में बाड़मेर की कोई विशेष पहचान नहीं थी रुमा देवी ने अपने कॉटन के कपड़े और साड़ियों पर कशीदाकारी करनी शुरू कर दी।

राजस्थान हेरिटेज वीक जयपुर मे जब पहली बार रुमा देवी ने फेशन शो किया तो यहा इनको कोई खास रिस्पांस नहीं मिला।  जब जयपुर मे इनको कोई खास प्रसिद्धि नही मिली तो इनहोने वापस आकार 1 महीने मे अपने नए प्रॉडक्ट तैयार किए ओर बाड़मेर फैशन लिबास शो मे भाग लिया, इस शो मे इनके प्रॉडक्ट को काफी ज्यादा पसंद किया गया। और तालियो तो इतनी बाजी की रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

रूमा देवी को राजस्थान स्थापना दिवस 30 मार्च को जयपुर में हुए मेगा-शो में प्रदर्शन करने का एक बड़ा मौका मिला। इस मेगा-शो कार्यक्रम को 112 देशों में लाइव  दिखाया गया था, राजस्थानी वेशभूषा को इस नये रूप में विदेश में पहली बार देखा जा रहा था। इसका फायदा यह हुआ कि रूमा देवी को कई फैशन डिजाइनरों से बहुत सारे ऑर्डर मिलने लगे । इसी बीच Ruma devi को जर्मनी के टेक्सटाइल शो में भी जाने का मौका मिला, टेक्सटाइल शो के दौरान जब रूमा देवी का नंबर आया तो रूमा सुई धागा को हाथ मे लेकर अपना हुनर दिखाने लगी, रूमा की कशीदाकारी देखकर विदेशी डिजाइनर अचंभित रह गए।

जिस महिला के साथ 2008 मे सिर्फ 10 महिलाए काम करती थी आज 2021 मे उनके साथ राजस्थान के तीन जिलो की 22,000 महिलाए काम करती है। ये महिलाए आत्मनिर्भर है और स्वयम का काम ओर हुनर विश्व पटल पर रंग बिरंगे धागो से बिखेर रही है।

नारी शक्ति अवार्ड

रुमा देवी को अपने जज्बे के कारण 2018 में नारी शक्ति पुरस्कार  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिया, ये पल इनके लिए गर्व की बात थी । रुमा देवी को अपने काम और हुनर की वजह से देश-विदेश मे कई अवार्ड से नवाजा गया है ।

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